Examine This Report on Hindi poetry
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कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।८८।
कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
नहीं हुआ है अभी सवेरा, पूरब की लाली पहचान, चिड़ियों के जगने से पहले, खाट छोड़ उठ गया किसान,
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
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जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५।
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,
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